संस्कृत को केवल एक भाषा नहीं बल्कि भारतीयों की समावेशी विरासत माना जाता है जो भारत के अतीत और वर्तमान के बीच एक सेतु का काम करता है। यह भारतीय बौद्धिक परंपराओं, कला, संस्कृति, भाषा विज्ञान, दर्शन, विज्ञान, आध्यात्मिकता आदि की कुंजी रही है। इसे ध्यान में रखते हुए, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत अध्ययन की आवश्यकता को समझते हुए 2019 में मानविकी एवं भाषा संकाय के अधीन संस्कृत का एक पूर्णकालिक विभाग स्थापित किया गया। यह एम.ए, एम.फिल एवं पी.एचडी. कार्यक्रमों का संचालन करता है। विभाग में छह संकाय सदस्य हैं जिनके पास इंडोलॉजी से जुड़ी विविध विशेषज्ञता है। यह प्रमुख रुप से वेद, साहित्य, न्याय-वैशेषिका, नव्य-न्याय भाषा, वेदांत, व्याकरण, सांख्य-योग, भाषाविज्ञान, और पांडुलिपिविज्ञान हैं। विभाग का एकमात्र उद्देश्य संस्कृत शैक्षणिक संस्कृति को शिक्षण और अधिगम में स्थापित करते हुए उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षण और शोध कार्य करना है ताकि भारतीय बौद्धिक परंपराएं और इसकी समकालीन वैश्विक आवश्यकता और महत्व को समझा जा सके। विभाग समकालीन मुद्दों से निपटने के लिए अतीत पर फिर से दावा करने और निर्बाध वैश्विक संस्कृत ज्ञान प्रणालियों के माध्यम से भविष्य को फिर से देखने के लिए सतत मानव विकास के लिए मानव विज्ञान में अभिनव विचारों को विकसित करने हेतु शैक्षणिक मंच बनाने के लिए समर्पित है। विभाग की परिकल्पना संस्कृत को प्राच्य और आधुनिकता दोनों से जोड़ते हुए और निम्नलिखित आदर्श वाक्य के साथ पूर्व और पश्चिम दोनों के प्रबुद्ध विचारों को संश्लेषित करना है:
पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् ।
सन्तः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः।। - मालविकाग्निमित्रम् - 1.2
सब कुछ महान नहीं है क्योंकि यह प्राचीन है। केवल आधुनिक होने मात्र से सब कुछ भी बुरा नहीं है। बुद्धिमान लोग चीजों को उचित मूल्यांकन के बाद ही अपनाते हैं। एक अज्ञानी आदमी बस दूसरों की कही गई बातों पर विश्वास करता है।