विश्वविद्यालय प्रतीक चिह्न: संकल्पना

एमजीसीयू का प्रतीक चिह्न
(1) चरखा एवं chakra
(2) महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार का ध्येय वाक्य “मयि श्रीः श्रयतां यशः का संयोजन है। legacy image .

चरखे की संकल्पना chakra image

महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार (एमजीसीयू) के प्रतीक चिह्न की अवधारणा महात्मा गाँधी का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिष्ठित प्रतीक चरखे से ली गई है। चरखे पर आरोहित तीन रंगों से युक्त धागों को घुमावदार प्रक्रिया में लपेटा जाता है और यह प्रक्रिया ही इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में परिणत करता है जो हमारे विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय महत्व का परिचायक है। चरखा ( पहिये के रूप में) विकास एवं वृद्धि का सांकेतिक रूप है। घूमते हुए पहिये को रूपक के तौर पर कच्चे माल से उत्पादक सामग्री में परिवर्तन के रूप में इंगित किया गया है जो हमारे समाज को परीलक्षित करता है। यह राष्ट्रीय एकता, बहुआयामी तथा सर्वांगीण विकास का प्रतीक है।

चरखे को नील रंग से दर्शाया गया है जो महात्मा गाँधी द्वारा औपनिवेशिक शासन के विरूद्ध पहले जन आंदोलन को दर्शाता है। चम्पारण आंदोलन (इंडिगो मूवमेंट) इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। विश्वविद्यालय का स्थापना वर्ष इस प्रसिद्ध चम्पारण आंदोलन का शताब्दी वर्ष है। यह अभिकल्पना चरखे और राष्ट्रीय आंदोलन का अमूर्त रूप है।

ऊपर बताए गए अवधारणा के अतिरिक्त यह अभिकल्पना मध्य में चमक/ दमकते सूरज/ तारे को दर्शाता है। सूर्य ऊर्जा का स्रोत है जिसका अभिप्राय ज्ञान के स्रोत से है। चरखे में आठ तिल्लियां है जिसका अभिप्राय ज्ञान और विवेक को सभी आठ दिशाओं में प्रसारित करना है तथा इसमें विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य सन्निहित है। संक्षेप में, प्रतीक चिह्न की विशेषता कुछ इस प्रकार है।

  • चरखा – (गाँधीजी का प्रतीक चिह्न एवं जीवन चक्र जो न सिर्फ राष्ट्रीय आंदोलन अपितु धागों के निर्माण से समाज को एक सूत्र में पिरोता है)
  • सूर्य – (जीवन के सभी स्वरूपों का प्राथमिक स्रोत)
  • चम्पारण आंदोलन - (एक विशिष्ट घटना जो दमनकारी औपनिवेशिक सत्ता के विरूद्ध गाँधीजी के प्रथम सत्याग्रह को रेखांकित करता है तथा स्थानीय संस्कृति को संदर्भित करने का परिचायक है।
  • चमकता तारा और अंतरस्थ श्वेत बाण -चरखे की ओर अभिमुख (सभी दिशाओं से आते लोग एवं गुणवत्ता युक्त शिक्षा से चमकते हुए तारे के समान बनना)
  • सम्यक दिशाएं – (सभी दिशाओं में ज्ञान का प्रचार-प्रसार)
  • स्व-निर्धारण एवं स्व-निर्भरता

चरखे के आठ तिल्लियों का सांकेतिक महत्व

भारतीय परंपरा में आठ बहुत ही महत्वपूर्ण संख्या है। यह माना जाता है कि आठ देवताओं का एक समूह है। अष्ट-दिक्पाल जिसका शाब्दिक अर्थ आठ दिशाओं का संरक्षक है। पतंजली का अष्टांग योग, साष्टांग नमस्कार (संपूर्ण शरीर से प्रणाम करना), अष्ट धातु (पवित्र धातु), अष्ट प्रहर (दिन के आठ अंश), अष्टकोणिय स्थापत्य ( अष्टभुजाकार वास्तुकला) आदि अन्य उदाहरण है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, आदित्य, वासु एवं देवी लक्ष्मी के स्वरूपों की संख्या आठ है।

बौद्ध धर्म के प्रतीक धर्मचक्र में आठ तिल्लियां है। बुद्ध के प्रमुख उपदेश- चार महान सत्य-आठ भागों में महान पथ के रूप में प्रसारित हुआ है एवं बुद्ध ने आठ उपलब्धियों को पाने के महत्व को रेखांकित किया है। इस्लाम, ईसाई धर्म, यहुदी धर्म, सिक्ख धर्म, एवं जैन धर्म में भी आठ का महत्वपूर्ण स्थान है।

इस्लाम में आठ फरिश्तों द्वारा अल्लाह के सिंहासन को जन्नत में ले जाया जाता है और बहिष्ट (जन्नत) के दरवाज़ों की संख्या भी आठ है।

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ईसाई धर्म में, पतरस 3:20 कहता है कि नूह के सन्दूक पर आठ लोग थे।

“जो कभी-कभी अवज्ञाकारी थे, और जबकि नोआह के दिनों में भगवान को बहुत दिनों तक दुख का सामना करना पड़ा, कुछ लोगों को जैसे कि उन आठ लोगों को पानी देकर बचाया गया था” (बाइबल, किंग जेम्स संस्करण,1.पीटर:20)

परम आनंद वो 8 आशीर्वाद है जिनको सर्मन ऑफ द माउंट इन द गॉस्पेल ऑफ मैथ्यू में दर्शाया गया है। (मैथ्यू 5;1-12)

सुखमणि साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब का एक अंश है जिसे पाँचवें सिक्ख गुरु, गुरु श्री अर्जन देव जी द्वारा संकलित किया गया था। इसमें 24 के साथ (खण्ड 8 से विभाज्य) 192 स्तुतियां है। 8 स्तुतियों के समूह को सिक्ख धर्म में अष्टपदी के नाम से जाना जाता है। अष्टपदी शाब्दिक रुप में 8 चरणों में 8 पंक्तियों वाली संगीत रचना है। इसे प्रेम और सर्वोच्च भक्ति की स्तुति माना जाता है।

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हैं (8 का गुणक) और जैन कर्म-सिद्धांत 8 प्रकार के कर्मों को वर्गीकृत करता है। (जैनी, पद्मनाभ एस, द जैन पाथ ऑफ प्यूरीफिकेशन, दिल्ली: मोतिलाल बनारसीदास, 1998)

कॉन्सेप्ट नोट

ऋग वेद के श्री सूक्त से उद्धृत एवं एमजीसीयू के ध्येय वाक्य के रूप में अपनाया गया यह वाक्य बहुत ही प्रेरणादायक एवं प्रोत्साहित करने वाला है जिसका अभिप्राय ‘मुझे समृद्धि, नाम और प्रतिष्ठा प्राप्त हो’ से है। समृद्धि केवल धन और संपत्ति के अधिग्रहण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सर्वांगीण मानव विकास शामिल है, जो वास्तव में किसी भी विश्वविद्यालय का प्राथमिक दायित्व है। ज्ञान आधारित समाज में, ज्ञान के बिना समृद्धि नहीं हो सकती है और समृद्धि के बिना नाम और प्रसिद्धि की अपेक्षा रखना व्यर्थ है।

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Updated on: 08 Spet 2022 02:30 PM
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